जीवन की इस पंक्ति पर
विराम लग गया है
इस ओर या उस ओर
कहीं तो होगा
इस जीवन का अर्थ
जो कुछ चिन्हों की सीमाओ में बंधा
सिर्फ देखता है मुझे
इस अर्थ का विस्तार चाहती हूँ
उस क्षितिज से भी दूर,
आकाश से ऊँचा,
प्रथ्वी से विस्तृत
सम्पूर्णता की कोई चाह नही ,
बस इतना भर,
अपने हिस्से का आकाश,
अपने हिस्से की जमीं,
जो सिर्फ मेरी हो
....... मेरी हो