Tuesday, February 2, 2010

रंग

जो जगहे,
खाली छोड़ दी थी तुमने,
उन्हें कुछ और रंगों से भर रही हूँ मैं
रंग,
तो तुमने ही भरा था
'सुर्ख सफ़ेद'
सफ़ेद
संभावनाओ का रंग,
कि जो भी चाहो वह रंग भरा जा सके
लोग खुश थे मुझे अपने ही रंगों में रंग कर
और मैं
इठला रही थी
अपनी सफेदी पर,
जिसे सिर्फ और सिर्फ तुम्ही ने
सृजा था

3 comments:

  1. अपने रंगों को खुद चुनकर खुद अपनी ज़िन्दगी में रंग भरने का फ़ैसला बिल्कुल सही है. अपने चिट्ठे (blog) को चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी से जोड़ लो, और लोग भी आपकी कविताओं का आनंद उठा सकेंगे.

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  2. "लोग खुश थे मुझे अपने ही रंगों में रंग कर
    और मैं
    इठला रही थी
    अपनी सफेदी पर,
    जिसे सिर्फ और सिर्फ तुम्ही ने
    सृजा था"
    अथाह गहराई लिए बेजोड़ रचना जिसमें सोच/समझ और सन्देश/आत्मविश्वास का अद्भुत समावेश है - कवियत्री को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं

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sabd mere hai pr un pr aap apni ray dekr unhe nya arth v de skte hai..