Monday, March 29, 2010

नींद

कोरी- सी ये रात,
तेरी नींद के सिरहाने रख आई थी मैं,
जब जागना तो इसे भी,
थोडा-सा उनींदा सा कर देना

Wednesday, March 17, 2010

जस -का -तस

ढलता सूरज,
फीकी कड़क -चाय
और
सूनी सी- छत
अब भी सब कुछ वैसा ही है
पर,
ये सब बिना किसी आहट के,
बस गुजर भर जाते है दिनचर्या में
मन का शोर
इन्हे अनसुना कर
अपनी ही धुन में
धडकता है,
और
वहां
सूरज
चाय
छत
सब कुछ
जस का तस है

Monday, March 8, 2010

औरत :एक प्रेरणा

मैंने,
स्थगित कर रखी है,
कुछ यात्राए
और चोराहे पर खड़े हो
पढ़ रही हूँ रास्तो को
हर आने जाने वाले से
गर्म जोशी से हाथ मिलाती हूँ
अनुभव करती हूँ
उनकी थकान,
और
बस सहला देती हूँ पीठ
कि चलो,
आगे बढ़ो,
फिर किसी और
चोराहे पर मिलूंगी
तुम्हे
उम्मीदों का दामन पकडे

Friday, March 5, 2010

विकल्प

कल कहा था उसने
कि मेरा कोई विकल्प ढूंढ़ लो,
जीना आसान हो जायेगा
सुना और मुस्करायी थी मैं,
क्या इसे पता नही
कि औरत के जीवन के,
विकल्प ही है,
ये
चुप्पी और आंसू

Thursday, March 4, 2010

आना तेरा

"वो जब -जब आया मेरे पास,

जिन्दगी ही लेकर आया

पर मैं उस से जिन्दगी के बदले,

एक मौत ही मांगती रही"

जीवन

सुनो,

तुम क्या लौटा सकते हो,

मुझे

वो सब

जिसे मैंने जिया था,

जाना था,

जैसे,

पल -पल में एक जीवन