Friday, April 23, 2010

अनकहा

अपनी
मौन सांसे
तुम को देना चाहती हूँ,
कि तुम,
इन्हे शब्द देकर,
स्वर देकर,
रंग देकर
दे दो इन्हे
एक नया अर्थ,
एक नयी लय,
एक नया रूप,
और
वो भी
जो इन सब के बीच भी
अनकहा सा रह जाता है

4 comments:

  1. kya baat hai
    sunder aur sateek rachna
    likhte rehiyigaa

    thanks

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  2. हम्म, बहुत दिनों बाद लिखा, लेकिन बहुत अच्छा लिखा.

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  3. :).. इस उम्मीद के साथ भी वो इन अनकहे शब्दो के मायने बिगाडे न.. ये अनकहे, मौन ही खूबसूरत है..

    बहुत सुन्दर..

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  4. बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा

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sabd mere hai pr un pr aap apni ray dekr unhe nya arth v de skte hai..