Sunday, May 23, 2010

महक

एक बार की ही तो,
चाहत थी उस की
मेरे बालो को अंजुरी में भर
सूंघ लेने की
और
बस दो पल ही
उस की लम्बी सांसे
मेरी खुशबू को पीती रही
उस के बाद
जब-जब ये जुल्फे खुली
तो
उस की सांसो की महक से
महकाती रही मुझे

2 comments:

  1. तुम्हारी कविताये छोटी होती है लेकिन अक्सर उन्हे बहुत बडी बडी बाते करते पाया है मैने...

    P.S. blogvani,chitthajagat से ब्लोग को जोडो..

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  2. बड़ी सारगर्भित पंक्तियां है /

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sabd mere hai pr un pr aap apni ray dekr unhe nya arth v de skte hai..