Saturday, November 27, 2010

विराम

जीवन की इस पंक्ति पर

विराम लग गया है

इस ओर या उस ओर

कहीं तो होगा

इस जीवन का अर्थ

जो कुछ चिन्हों की सीमाओ में बंधा

सिर्फ देखता है मुझे

इस अर्थ का विस्तार चाहती हूँ

उस क्षितिज से भी दूर,

आकाश से ऊँचा,

प्रथ्वी से विस्तृत

सम्पूर्णता की कोई चाह नही ,

बस इतना भर,

अपने हिस्से का आकाश,

अपने हिस्से की जमीं,

जो सिर्फ मेरी हो

....... मेरी हो