मैंने,
स्थगित कर रखी है,
कुछ यात्राए
और चोराहे पर खड़े हो
पढ़ रही हूँ रास्तो को
हर आने जाने वाले से
गर्म जोशी से हाथ मिलाती हूँ
अनुभव करती हूँ
उनकी थकान,
और
बस सहला देती हूँ पीठ
कि चलो,
आगे बढ़ो,
फिर किसी और
चोराहे पर मिलूंगी
तुम्हे
उम्मीदों का दामन पकडे
wow !!! its really a good poem.
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