हम दो किनारे
अलग -अलग,
पर साथ चलते हुए
मैं अक्सर अपनी सीमा छोड़,
तुम में मिलना चाहती
और तुम
मेरे आने को देखते बस,
ना स्वागत,ना तिरस्कार
मैं कुछ देर ठहरती तुम्हारे पास
अपनी ख़ुशी के लिए
वापस आती तो साथ लाती
ढेर सारा दुःख
जो तुमने चलते वक़्त
मेरी झोली में भर दिये थे
हंसकर, कहते हुए
संभाल कर रखना
इन्हे
ये ही तेरी पूंजी है
उफ़्फ़... जबरदस्त... बट सैड :(
ReplyDeleteDOST YE BHI JIVAN KA EK RANG HI HAI NA,PHIR ES KO KM KYU AANKA JAYE..
ReplyDeleteSayad isiliye kaha gaya hai...dard jab had se gujar jata hai to dava ban jata hai !
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