Monday, April 5, 2010

कौन हो तुम

कौन हो तुम
मेरे
भूत, वर्तमान या भविष्य
जो था कल
उस में तो नही हो तुम,
जो चल रहा है,
वहाँ भी नही हो तुम
और
जो कल होगा
वहाँ भी नही होगे तुम
फिर
ये धड़कन
ये साँस
क्यों कहती है मुझसे
कि
तुम हो
पल-पल,हर -पल

6 comments:

  1. कोई न कोई तो है. बुद्धि भले ही न समझ पाये आत्मा समझती है, महसूस करती है, मन भले ही न गुन पाये अन्तर्मन गुन लेता है उसकी आहट.

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  2. बहुत सुन्दर रचना । आभार

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  3. सुंदर भावाभिव्यक्ति...

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  4. सब उसी ’तुम’ को ढूढते है.. मीरा ने भी ढूढा था.. मजनू ने भी..

    बहुत सुन्दर..

    अपने ब्लाग को चिट्ठाजगत ब अन्य ब्लाग अग्रीगेटर्स से जोड ले.. लोगो को आपका लिखा पढने मे आसानी रहेगी..

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  5. main to abhi naya naya aaya hun bloging ki duniyan me....kuch apne jaise khayalaton ko dhundh raha tha....nazar bhatakte hue yahan thahar gayee....ye thokar hai ya manzil ya ki koi padaw...na janu...par pasand aayee ye panktiyan

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  6. जो था कल
    उस में तो नही हो तुम,
    जो चल रहा है,
    वहाँ भी नही हो तुम
    -सचमुच...बस कोई भावना वाला ही महसूस कर सकता है। शानदार रचा है आपने।

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sabd mere hai pr un pr aap apni ray dekr unhe nya arth v de skte hai..