सुनो,
मैं
तुम्हें बताना चाहती हूँ
अपने शरीर की रिसती एक -एक बूंद का दर्द
दर्द,
जो तुम्हारे लिए इतना ही है,
कि जिसे सुन लिया जाये,
एक हाँ, हूँ के साथ
और मैं,
इस बूंद- बूंद बहती नदी को,
जीती हूँ,
दिन -व -दिन,
महीने -दर- महीने
यह एक बूंद,
मुझे जोडती भी है तुम से,
और दूर भी करती है,
मीलों तक
लेकिन,
कभी अगर इस दर्द की भाषा समझ सको,
तो जरुर आना,
इन मीलों की दूरी को तय कर के,
प्यार से सर पर हाथ रखने
pyar se sar pr haath rakhne....achhi kavita hai
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