एक 'उम्मीद'
मैंने आज फिर गमले में लगा दी हैं,
मिटटी
डाली है इस बार
और थोड़ी खाद भी .
अब रोज सीचेगे हम इसे
अपने प्रेम से,
बातो से,
हंसी से,
झगड़ो से,
मनुहार से,
और जब 'उम्मीद' बढ़ेगी,फेलेगी
तो हम भी देखेगे कि
किसी बड़े सपने का
फलना क्या होता है
जो हमारी जिन्दगी में
हर रोज महकता है.
उम्मीदों का ये पौधा पलेगा-बढ़ेगा. सींचते रहो इसे बस.
ReplyDeleteअपनी सेटिंग में जाकर ’शब्द-पुष्टिकरण" हटा दो तो टिप्पणी करने में आसानी होगी.
ReplyDelete"एक 'उम्मीद'
ReplyDeleteमैंने आज फिर गमले में लगा दी हैं"
वाह - वाह
सोच ऐसी है तो मंजिल दूर नहीं - शुभकामनाएं
it is a nice poem , please keep writing this short of poems.........
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