कीचड़
कभी रूठती मैं
तो मनाते हो तुम
मेरे नाज़ उठाते हो तुम
ज़रा भी ये सोचे की मैं ग़लत भी हूँ
उस पल लगता की तेरा ही
हिस्सा हूँ मैं
जो रूठ गया बच्चों सा
अपने ही मन का कोई कोना
जो कभी यू ही अनमना सा रहता है
पर
जब तुम ठहरते हो पानी सा
तो तुम्हें दिखती है मेरी नीचे बैठ गयी काई
जो वेग में बहती है तुम में
ओर जब स्थिर होते हो तुम
तो दिखती है
अलग -अलग
पानी सा तुम
कीचड़ सी मैं।
nice aricle Sir. Motivanonal Quaote
ReplyDelete