mere sabd tere arth
Thursday, August 12, 2010
रिश्ता
इतना ही तो कहा था
जाओ
मुक्त हो तुम
निरासक्त
निर्द्वन्द
निर्भय
और
तुम लौट आये
मेरे ही आँचल में,
पलकों की कोर में ,
बाहों के समुन्दर में
दरसल,
ये दूरिया और नजदिकिया थी
मेरे और तेरे वजूद की
जो कभी सीप होना चाहती थी
तो कभी बूंद
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