Saturday, January 30, 2010

उम्मीद

एक 'उम्मीद'
मैंने आज फिर गमले में लगा दी हैं,
मिटटी
डाली है इस बार
और थोड़ी खाद भी .
अब रोज सीचेगे हम इसे
अपने प्रेम से,
बातो से,
हंसी से,
झगड़ो से,
मनुहार से,
और जब 'उम्मीद' बढ़ेगी,फेलेगी
तो हम भी देखेगे कि
किसी बड़े सपने का
फलना क्या होता है
जो हमारी जिन्दगी में
हर रोज महकता है.

Monday, January 18, 2010

मादा

सिकुड़ जाती हूँ
अक्सर
इस 'साये' में
जो चलता रहता साथ मेरे
हर दम, हर जगह
कभी महसूस करना तुम भी
'ऑरत' के
इस साये को
जो गाहे-बगाहे निरीह बनाता है मुझे
मेरी आत्मा से अलग मेरा शरीर
दबोचता,
मसलता,
कचोटता रहता है
कि
तुम
सिर्फ
'मादा' हो

Friday, January 15, 2010

भवंर

रोज मेरे साथ चलता था,

ये दर्द

मैंने कहा,

दोस्त बन जाओ मेरे,

बस,

रहो मेरे साथ,

चलो मेरे साथ,

जियो मेरे साथ।

पर,

ये दर्द

मेरे वजूद से ज्यादा ताकतवर था,

साथी से स्वामी हो गया,

और अब

मेरे वजूद में एक,

भवंर पैदा

किये रहता है

Thursday, January 14, 2010

मासिक- धर्म

सुनो,

मैं

तुम्हें बताना चाहती हूँ

अपने शरीर की रिसती एक -एक बूंद का दर्द

दर्द,

जो तुम्हारे लिए इतना ही है,

कि जिसे सुन लिया जाये,

एक हाँ, हूँ के साथ

और मैं,

इस बूंद- बूंद बहती नदी को,

जीती हूँ,

दिन -व -दिन,

महीने -दर- महीने

यह एक बूंद,

मुझे जोडती भी है तुम से,

और दूर भी करती है,

मीलों तक

लेकिन,

कभी अगर इस दर्द की भाषा समझ सको,

तो जरुर आना,

इन मीलों की दूरी को तय कर के,

प्यार से सर पर हाथ रखने

दूसरी

तुम प्रेम की एक और नई परिभाषा गढ़ो,
जिसमे ठीक- ठीक बैठा सको मुझे,
कि मैं,
तुम्हारा 'दूसरा' प्रेम हूँ
जिसे तुमने गाहे -बेगाहें स्वीकार किया है
वैसे भी,
इस दूसरे के लिए तुम्हें 'सब कुछ' नया गढ़ना होगा,
क्योंकि,
हमारी सभ्यता ने तो इस दूसरी के लिए कुछ रखा ही नही है
यहाँ सब कुछ 'पहले ' के लिए ही आरक्षित है,
प्यार,
सम्मान,
और
रिश्ता भी
पहले के बाद जो भी,जैसा भी है,
सब 'अनैतिक' है
तो दोस्त,
मत सर- दर्द लो तुम,
और छोड़ दो मुझे,
किसी और का
'पहला' बनने के लिए

Tuesday, January 12, 2010

जाने के बाद

जीवन से ज्यादा,अब

कविता चलती है

जीवन में ,

कभी बनती- सी,तो बिगडती- सी

कभी शब्दों से,कभी आंसुओ से

उडति हवा और बहता पानी भी,

कविता बन जाता है।

जान गयी हूँ ,

तेरे जाने के बाद

अपना अपना हिस्सा

सुनो,

वो जो पल ठहर गये उस दिन,

उन्हें ले जाना तुम,

संभालकर रख लेना ,

अपने इतिहास के लिए ,

मैं तो अपने हिस्से के ले आई थी,

जीने के लिए